100 से ज्यादा छात्राओं के साथ दुष्कर्म,इंसाफ मिलने में लग गए 32 साल,6 आरोपियों को मिली उम्रकैद की सजा,पढ़ें दिल दहलाने वाली ये खबर |
भारत के बहुचर्चित अजमेर ब्लैकमेल कांड पर मंगलवार को विशेष न्यायालय कोर्ट संख्या-2 ने अपना फैसला सुनाया है। आज से करीब 32 साल पहले 1992 में हुए इस मामले से राजस्थान के साथ देश भी कांप उठा था और तत्कालीन सरकार हिल गई थी। कोर्ट ने इस मामले के बचे हुए छह आरोपियों को लेकर आज अपना फैसला सुनाया, जिसमें छह आरोपियों को दोषी मानते हुए धारा- 376, 376 डी और 120 बी के तहत 208 पेज के फैसले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इसमें एक आरोपी की तबियत खराब होने के चलते उसे एंबुलेंस में लाया गया था। वहीं, इससे पूर्व कोर्ट में बड़ी संख्या में पुलिस का जाब्ता मौजूद रहा और आरोपियों के दोषी साबित होते ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। हालांकि, कोर्ट ने अपना फैसला दो बजे के बाद सुनाया।
राजस्थान के अजमेर जिले में साल 1992 में स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की नग्न तस्वीरें खींचकर उनको ब्लैकमेल करने के मामले में पूरे राजस्थान के साथ देश शर्मसार हुआ था। मामले में लड़कियों की अश्लील फोटो खींचकर उनको ब्लैकमेल कर दुष्कर्म करने के इस केस ने तत्कालीन सरकार में हड़कंप मचा दिया था। अपनी बदनामी के डर से कई लड़कियों ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया था। इस केस के चार अभियुक्तों को पूर्व में सजा हो चुकी है, लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने उनको बरी कर दिया था। आज बचे हुए छह अन्य आरोपियों को लेकर आजीवन कारावास की सजा का फैसला सुनाया गया। इसके साथ ही न्यायालय ने प्रत्येक आरोपियों पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अजमेर ब्लैकमेल कांड की पॉक्सो कोर्ट संख्या-2 में सुनवाई चल रही थी। इस केस के आरोपी नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन का ट्रायल पूरा हो गया था। पॉक्सो कोर्ट-2 के न्यायाधीश रंजन सिंह ने इन आरोपियों को दोषी मानते हुए अपना फैसला सुनाया। इस मामले में पूर्व में नौ आरोपियों को सजा सुनाई जा चुकी है। एक ने सुसाइड कर लिया था। मामले में आरोपी ईशरत अली, अनवर चिश्ती, मोइजुल्हा उर्फ पूतन इलाहाबाद, शमसू उर्फ मरदाना को 10 साल की भुगती सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में छोड़ दिया था। वहीं, साल 2001 में हाईकोर्ट ने चार आरोपी महेश लुधानी, परवेज, हरीश, कैलाश सोनी को बरी कर दिया था। इन चारों को साल 1998 में सेशन कोर्ट ने उम्रकैद सुनाई थी, केस में कुल 18 आरोपी थे।
10 से ज्यादा चार्ज शीट केस में
पहली चार्जशीट 8 आरोपियों के खिलाफ और इसके बाद 4 अलग-अलग चार्जशीट 4 आरोपियों के खिलाफ थीं। इसके बाद भी पुलिस ने 6 अन्य आरोपियों के खिलाफ 4 और चार्जशीट पेश की। यहीं पुलिस ने सबसे बड़ी गलती कर दी, जिस वजह से 32 साल बाद भी केस में इंसाफ नहीं हो पाया है।