उत्तराखंड की ईष्ट देवी मां नंदा देवी की कैलाश के लिए 31 अगस्त को घाट के कुरुड़ मंदिर जहां उनका मायका है से विभिन्न पड़ावों में अपने भक्तों को दर्शन और आशीर्वाद देते हुए चलकर नन्दा देवी की लोकजात आज मुंदोली से विदा होकर अपने बारहवें पड़ाव वाण गांव पहुंची।आज वाण गांव से तेरहवें पड़ाव गैरोली पातल के लिए विदा कर दी गई है।मां नंदा देवी का ससुराल का क्षेत्र वाण गांव से प्रारंभ हो जाता है। यहां से मां नंदा देवी के धर्म भाई लाटू देवता लोकजात के मुखिया के रूप में अगवानी करते हैं।
सोमवार को नंदा सस्तमी अमुकता भर्णी तिथि को वेदनी बुग्याल के वेदनी कुण्ड में मां नंदा देवी की पूजा अर्चना की जायेगी।
यह यात्रा हिमालयी कुंभ के नाम से जानी जाती है। वर्तमान में चल रही लोकजात को लोगों द्वारा आयोजित की जाती है।और यह प्रति वर्ष आयोजित की जाती है।प्रतैक बारह वर्षों में राजजात का आयोजन होता है जिसे टीहरी के राजा के द्वारा आयोजित की जाती है।यह यात्रा 360 कीलोमीटर की विकट यात्रा है।जो रूपकुंड और होमकुंड तक जाती है।इस राजजात यात्रा देश विदेश से हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। शासन-प्रशासन की पूरी देखरेख में यात्रा का प्रबंधन रहता है।
लोकजात आज गैरोली पातल में रात्रि विश्राम करेगी। सैंकड़ों लोकजात के यात्री भी मां नंदा की जयकारों के साथ मां नंदा देवी के साथ चल रहे हैं।घाट क्षेत्र मायका और पिंडर घाटी के बधाण नंदा देवी का ननिहाल क्षेत्र है।कुरूड के गौड़ ब्राह्मण नंदा देवी के मुख्य पुजारी होते हैं।और वे ही लोकजात और राजजात के मुख्य कर्ताधर्ता रहते हैं।