शाहजहांपुर: यहाँ साल में सिर्फ 6 दिन खुलते हैं प्राचीन देवी मंदिर के कपाट,यूपी के इस जिले में है स्थित, जानें इतिहास

Spread the love

 

 

शाहजहांपुर के कुर्रियाकलां स्थित प्राचीन देवी मंदिर का इतिहास लखीमपुर खीरी जिले की ओयल रियासत से जुड़ा है। करीब पांच सौ वर्ष पुराने इस मंदिर के कपाट वर्ष में केवल दो बार नवरात्र का पारायण होने के बाद तीन दिन के लिए ही खुलते हैं। इस बार सोमवार को सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खुलने से पहले पुजारी के परिवार ने वहां सफाई कराकर पूरे परिसर का रंगरोगन कराया है। मंगलवार को भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी।

ओयल के मेंढक मंदिर की तरह माता का यह मंदिर भी तंत्र विद्या पर आधारित है। मंदिर के पुजारी पंडित गुरुदेव प्रसाद दीक्षित के अनुसार ओयल रियासत के मेंढक मंदिर की तरह गांव के देवी मंदिर की नींव में कच्छप की तरह आकृति बनी हुई है। किंवदंती के अनुसार एक बार ओयल के तत्कालीन राजा के यहां एक कारीगर ने तांत्रिकों के समक्ष शंकर जी की काष्ठ प्रतिमा को हंसाने की शर्त रखी। इसमें गांव के देवी मंदिर के वर्तमान पुजारी के पूर्वज सहतावन लाल भी पहुंचे।

वहां मौजूद सभी तांत्रिकों ने मूर्ति को हंसाने का काफी प्रयास किया लेकिन मूर्ति को हंसा न सके। पुजारी बताते हैं कि बाद में उनके पूर्वज पंडित सहतावन लाल ने एक अभिमंत्रित पान जैसे ही मूर्ति के अधरों पर लगाया, शिव प्रतिमा मुस्कान बिखेरती प्रतीत होने लगी। इस पर शर्त के अनुसार राजा ने शिव प्रतिमा दे दी, जिसे पुजारी सहतावन लाल ने यहां लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया। 

पुजारी ने घर को दे दिया मंदिर का स्वरूप
मंदिर में भगवान हनुमान सहित मां दुर्गा के कई स्वरूपों की काष्ठ से निर्मित कई प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। खास यह है कि पुजारी परिवार ने अपने घर के एक हिस्से को ही मंदिर का स्वरूप देकर वहां देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की हैं। इसीलिए देवी मंदिर को न तो कोई गुंबदनुमा आकार मिला और न ही वहां अन्य कोई ऐसा चिह्न है, जिसे देखकर मंदिर जैसा आभास हो।

इसलिए घर में स्थित है मंदिर 
घर में मंदिर की स्थापना के पीछे भी एक रोचक कथा है। पुजारी के अनुसार उनके पूर्वज पंडित सहतावन लाल कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से देवी स्वरूप की मूर्ति लाए थे। इस मूर्ति को ओयल से लाई गई भगवान शंकर की मूर्ति के साथ उन्होंने मकान के एक हिस्से में रख दिया। उनका विचार था कि कोई अच्छी तिथि पर उन सभी मूर्तियों की मंदिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा कराएंगे, लेकिन उससे पहले शारदीय नवरात्र की दशमी को मूर्तियों वाले कक्ष के बंद कपाट के ताले स्वत: खुल गए जो तीन बाद द्वादशी तिथि को स्वयं बंद भी हो गए।

यही अलौकिक प्रक्रिया चैत्र नवरात्र की दशमी व द्वादशी तिथि को भी हुई। इसे देखते पुजारी के पूर्वज ने मूर्तियों को मंदिर में प्रतिष्ठित करने की बजाय अपने घर के उस हिस्से को ही मंदिर बना दिया। तब से हर साल नवरात्र के बाद इन्हीं तिथियों में देवी मंदिर के कपाट खोले और बंद किए जाते हैं।

भोर में चार बजे खुले कपाट 
पुजारी पंडित गुरुदेव प्रसाद दीक्षित बताते हैं कि छह माह के अंतराल पर हर साल तीन दिन के लिए देवी मंदिर के कपाट खुलते हैं। सोमवार को भोर में चार बजे मंदिर के कपाट खोलकर देवी जी सहित अन्य देव विग्रहों का पूजन कर देवी दर्शन सुलभ कराया जाएगा। यहां आने वाले हर श्रद्धालु को देवी दर्शन के बाद अपने जीवन में अलौकिक अनुभव अवश्य होते हैं। मनौतियां पूरी होने से मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में आस्था और मान्यता भी बढ़ रही है। इसीलिए मंदिर की ख्याति सुनकर आसपास के जनपदों से भी तमाम श्रद्धालु हर साल देवी दर्शन को आते हैं।

और पढ़े  आज से 3 दिनों तक बसों में मुफ्त यात्रा करेंगी महिलाएं, सरकार की सौगात से एक सहायक का टिकट भी माफ

 


Spread the love
  • Related Posts

    शाहजहांपुर- युवती की संदिग्ध हालात में गोली लगने से मौत, पिता बोले…

    Spread the love

    Spread the love  शाहजहांपुर के खुटार कस्बा के मोहल्ला पश्चिमी गढ़ी में एक युवती की गोली लगने से संदिग्ध हालात में मौत हो गई। परिजनों के अनुसार युवती ने बीमारी…


    Spread the love

    मानसून सत्र का पहला दिन,विपक्ष के हंगामे के बीच,अब कल सुबह 11 बजे शुरू होगा सदन

    Spread the love

    Spread the loveयूपी विधानमंडल का मानसून सत्र चल रहा है। सत्र के दौरान प्रदेश में परिषदीय स्कूलों के विलय और बिजली निजीकरण के मुद्दे पर गहमागहमी का माहौल बन गया।…


    Spread the love